NitiNil Life

Friday, January 25, 2013

स्वामी और सेब

एक बार स्वामी रामतीर्थ कॉलेज से घर आ रहे थे। रास्ते में उन्होंने एक व्यक्ति को सेब बेचते हुए पाया। लाल-लाल सेब देखकर उनका मन चंचल हो उठा और वह सेब वाले के पास पहुंचे और उससे सेबों का दाम पूछने लगे। तभी उन्होंने सोचा, 'यह जीभ क्यों पीछे पड़ी है?' वह दाम पूछकर आगे बढ़ गए। कुछ आगे बढ़कर उन्होंने सोचा कि जब दाम पूछ ही लिए तो उन्हें खरीदने में क्या हर्ज है। इसी उहापोह में कभी वे आगे बढ़ते और कभी पीछे जाते। सेब वाला उन्हें देख रहा था। वह बोला, 'साहब, सेब लेने हैं तो ले लीजिए, इस तरह बार-बार क्यों आगे पीछे जा रहे हैं?' आखिरकार उन्होंने कुछ सेब खरीद लिए और घर चल पड़े। घर पहुंचने पर उन्होंने सेबों को एक ओर रखा। लेकिन उनकी नजर लगातार उन पर पड़ी हुई थी। उन्होंने चाकू लेकर सेब काटा। सेब काटते ही उनका मन उसे खाने के लिए लालायित होने लगा, लेकिन वह स्वयं से बोले, 'किसी भी हाल में चंचल मन को इस सेब को खाने से रोकना है। आखिर मैं भी देखता हूं कि जीभ का स्वाद जीतता है या मेरा मन नियंत्रित होकर मुझे जिताता है। सेब को उन्होंने अपनी नजरों के सामने रखा और स्वयं पर नियंत्रण रखकर उसे खाने से रोकने लगे। काफी समय बीत गया। धीरे-धीरे कटा हुआ सेब पीला पड़कर काला होने लगा लेकिन स्वामी जी ने उसे हाथ तक नहीं लगाया। फिर वह प्रसन्न होकर स्वयं से बोले, 'आखिर मैंने अपने चंचल मन को नियंत्रित कर ही लिया।' फिर वह दूसरे काम में लग गए।

द्रोणाचार्य का पाठ

उन दिनों पांडव, द्रोणाचार्य से शिक्षा ले रहे थे। एक दिन उनका पाठ था, 'क्रोध को जीतो।' पाठ पढ़ाने के बाद द्रोणाचार्य ने अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव और युधिष्ठिर, सभी से पूछा, 'पाठ याद हो गया?' युधिष्ठिर को छोड़ सभी ने उत्तर दिया, 'याद हो गया।' लेकिन युधिष्ठिर ने कहा, 'याद नहीं हुआ।' द्रोणाचार्य ने विस्मय के साथ पूछा, 'क्या बात है, इतना सीधा-सादा पाठ तुम्हें याद नहीं हुआ? युधिष्ठिर का उत्तर था, 'नहीं हुआ।' द्रोण ने कहा, 'ठीक है कल याद करके आना।' अगले दिन द्रोण ने पूछा, 'याद हो गया?' युधिष्ठिर का उत्तर था, 'नहीं हुआ।' द्रोण क्रोधित होकर बोले, 'तुम्हारे दिमाग में बुद्धि है या भूसा भरा है?' युधिष्ठिर ने बिना हिचकिचाहट के कहा, 'नहीं, मुझे पाठ याद नहीं हुआ।' द्रोण ने गरजते हुए कहा, 'तुमने दो दिन बर्बाद कर दिए। यदि तुम कल पाठ याद कर के नहीं आए तो तुम्हें दंडित होना पड़ेगा।' तीसरे दिन भी युधिष्ठिर ने 'नहीं' उत्तर दिया। तब द्रोण ने युधिष्ठिर के गाल पर एक चांटा मारा। युधिष्ठिर कुछ देर चुपचाप खड़े रहे, फिर बोले, 'पाठ याद हो गया।' द्रोण बोले, 'मुझे पता नहीं था कि चांटा खाकर तुम्हें पाठ याद होगा अन्यथा पहले ही दिन तुम्हें चांटा खिला देता।' विनम्र स्वर में युधिष्ठिर ने कहा, 'गुरुदेव, ऐसी बात नहीं थी, मुझे अपने पर भरोसा नहीं था। आपने बड़े प्रेम से पाठ पढ़ाया तो मेरे मन ने कहा कोई प्यार से बात करे तो क्रोध का सवाल ही नहीं उठता। हो सकता है, तीखी भाषा में बोले तो क्रोध आ जाए। अगले दिन जब आपने कहा कि मेरे दिमाग में बुद्धि है या भूसा, तब भी मुझे क्रोध नहीं आया। लेकिन मेरे मन ने कहा अभी एक और परीक्षा बाकी है, कोई बल प्रयोग करे तो क्रोध आ जाए। आज आपने जब चांटा मारा फिर भी मुझे क्रोध नहीं आया। तब मैं समझा कि मुझे पाठ याद हो गया।' द्रोण ने युधिष्ठिर को गले लगा लिया।

आशीर्वाद का अर्थ

एक बार राजा विक्रमादित्य आचार्य सिद्धसेन सूरि के दर्शनार्थ गए। दोनों में कई विषयों पर चर्चा हुई। राजा के मन में जो भी जिज्ञासाएं थीं, उन्होंने आचार्य के समक्ष रखीं। दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे। राजा को भी शुरू में संकोच था कि पता नहीं आचार्य कैसे होंगे। पर वह उनकी सरलता से बेहद प्रभावित हुए। उनकी बातों से राजा का मन हल्का हो गया था। चलते समय जब विक्रमादित्य ने प्रणाम किया तो आचार्य ने धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया। इस आशीर्वाद में भी राजा को नएपन का अहसास हुआ। वह पहले भी कई संत-महात्माओं से मिल आए थे पर किसी ने उन्हें यह आशीर्वाद नहीं दिया था। राजा ने पूछ ही लिया-गुरुदेव क्षमा करें, एक जिज्ञासा है। आपने यह कैसा आशीर्वाद मुझे दिया है। अन्य साधु-संत तो आयुष्मान भव, पुत्रवान भव या धनवान भव का आशीर्वाद देते हैं पर आपने तो धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया है...। यह सुनकर आचार्य मुस्कराए और बोले- राजन्, दीर्घ जीवन का आशीर्वाद क्या दिया जाए। दीर्घ जीवन जीने वाले तो बहुत से जीव होते हैं जैसे हाथी, कछुआ। पुत्रवान भव का भी क्या मतलब है। कुत्ते, सुअर आदि सभी संतान पैदा करते हैं। और धनवान बनने के लिए भी क्या कहूं। पापियों और अन्यायियों के पास भी अपार संपत्ति होती है। किंतु धर्म लाभ तो भाग्यशाली लोग ही कर पाते हैं। और जो धर्मलाभ करते हैं वे दूसरों के जीवन को भी बदलने में सक्षम होते हैं। इसलिए मैंने आपको धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया है। राजा उनके प्रति नतमस्तक हो गए।

दो पैसे का मेला...!

यह घटना सन् 1942 की है। इलाहाबाद में कुंभ की धूम मची हुई थी। उन दिनों भारत के वायसराय लार्ड लिनलिथगो थे। वह भी मेला देखने के लिए पंडित मदनमोहन मालवीय जी के साथ पहुंचे। उन्होंने देखा कि कुंभ में देश के विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न जातियों और समूहों के लोग विभिन्न वेषभूषाओं में सजकर आए हुए हैं। यह सब देखकर वायसराय मालवीय जी से बोले, 'इस मेले में लोगों को इकट्ठा करने के लिए प्रचार-प्रसार पर काफी रुपया खर्च होता होगा। कुछ अनुमान है कि कितना रुपया लग जाता है?' वायसराय की बात सुनकर मालवीय जी मुस्कराते हुए बोले, 'मात्र दो पैसे।' यह सुनकर वायसराय दंग रह गए और बोले, 'क्या कहा आपने? मात्र दो पैसे? भला यह कैसे संभव है? भला दो पैसे से यहां इतनी भीड़ कैसे जुटाई जा सकती है?' वायसराय की बात सुनकर मालवीय जी ने अपने पास से पंचांग निकाला और उसे दिखाते हुए बोले, 'इस दो पैसे के पंचाग से देश भर के श्रद्धालु यह पता लगते ही कि कौन सा पर्व कब है, स्वयं श्रद्धा के वशीभूत होकर तीर्थयात्रा को निकल पड़ते हैं। धार्मिक संस्थाओं व सभाओं को कभी भी न प्रचार की आवश्यकता पड़ती है और न ही इन लोगों को निमंत्रण भेजने की।' मालवीय जी की बात सुनकर वायसराय को हैरानी हुई। उन्होंने कहा, 'वाकई यह तो बड़े अचरज की बात है।' मालवीय जी उनकी बात का जवाब देते हुए बोले, 'अचरज की बात नहीं जनाब, यह मेला श्रद्धालुओं का अनूठा संगम है। यहां सब अपने आप खिंचे चले आते हैं।' वायसराय श्रद्धालुओं के प्रति नतमस्तक हो गए।

संत का जवाब

एक दिन एक व्यक्ति ने संत रामदास से पूछा, 'महाराज, आप इतनी अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं। यह बताइए, आपके मन में कभी कोई विकार नहीं आता?' संत रामदास ने कहा, 'सुनो भाई, तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर तो मैं बाद में दूंगा। परंतु आज से ठीक एक महीने बाद इसी समय तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। यह सुन कर उस व्यक्ति के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। वह थर-थर कांपने लगा।

सोचने लगा- मेरी मृत्यु! आज से एक महीने बाद! अब क्या होगा? वह जैसे-तैसे घर पहुंचा। घरवालों को संत रामदास की भविष्यवाणी के बारे में बता कर बोला, 'अब मेरा अंत समय आ गया है। घर की सारी व्यवस्था आप लोग संभालिए।' घर के सभी लोग स्तब्ध रह गए। रामदास जैसे पहुंचे हुए संत की भविष्यवाणी झूठ तो हो नहीं सकती। उस व्यक्ति को इतनी ठेस लगी कि वह बिस्तर पर पड़ गया। एक-एक दिन गिनने लगा।

ज्यों-ज्यों दिन बीतते उसकी वेदना और बढ़ती जाती। आखिर एक माह पूरा हुआ। मृत्यु का वो दिन आ ही गया। लोगों की भीड़ जमा हो गई। सब हैरान, परेशान। इतने में संत रामदास भी आ गए। भीड़ देख कर बोले,' यह सब क्या हो रहा है?' उस व्यक्ति ने बड़ी कठिनाई से बोलते हुए कहा, 'आपने ही तो कहा था कि आज मेरी मृत्यु का दिन है।' संत रामदास ने पूछा, 'पहले यह बताओ कि इस एक महीने में तुम्हारे मन में कोई विकार आया?'


उस व्यक्ति ने कहा, 'विकार! स्वामी जी मेरे सामने तो हर समय मौत खड़ी रही। विकार कहां से आता?' संत रामदास ने कहा, 'तुम्हारी मौत-वौत कुछ नहीं आने वाली। अरे पगले, मैंने तो तुम्हारे सवाल का जवाब दिया था। तुम्हारे सामने मौत रही, उसी तरह मेरे सामने ईश्वर रहता है। फिर मेरे मन में विकार कैसे आएगा?' उस व्यक्ति ने राहत की सांस ली। उसने अपना जवाब पा लिया और मृत्यु के भय से छुटकारा भी।

Wednesday, December 26, 2012

नफरत का बोझ

बहुत पुरानी कथा है। एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिससे वे नफरत करते हैं। जो शिष्य जितने व्यक्तियों से घृणा करता है, वह उतने आलू लेकर आए। अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए। किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास छह। गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते, गुरु का आदेश था। दो-चार दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए। जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु के पास पहुंचे। सबने बताया कि वे उन सड़े आलुओं से परेशान हो गए हैं। गुरु ने कहा- यह सब मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था। जब सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से नफरत करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर रहता होगा। यह नफरत आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक इन आलुओं की तरह। इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो। इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा। सभी शिष्यों ने वैसा ही किया।

Russian Office Rampage !`

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Friday, February 29, 2008

HELLO ...!!!!!!!!!!!!!!

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Monday, August 20, 2007

21 Things To Remember.............*



1. No one can ruin your day without YOUR permission.

2. Most people will be about as happy, as they decide to be.

3. Others can stop you temporarily, but only you can do it permanently.

4. Whatever you are willing to put up with, is exactly what you will have.

5. Success stops when you do.

6. When your ship comes in.... make sure you are willing to unload it.

7. You will never have it all together.

8. Life is a journey...not a destination. Enjoy the trip!

9. The biggest lie on the planet When I get what I want I will be happy.

10. The best way to escape your problem is to solve it.

11. I've learned that ultimately , 'takers' lose and 'givers' win.

12. Life's precious moments don't have value, unless they are shared.

13. If you don't start, it's certain you won't arrive.

14. We often fear the thing we want the most.

15. He or she who laughs......lasts.

16. Yesterday was the deadline for all complaints.

17. Look for opportunities...not guarantees.

18. Life is what's coming....not what was.

19. Success is getting up one more time.

20. Now is the most interesting time of all.

21. When things go wrong.....don't go with them.

NitiniL

Communicate with Confidence ....



When you have an important event to attend there are 7 great ways to make
sure you perform at your very best. These tips are relevant for social
events and business meetings. Discover how to communicate with confidence
while making great conversation.

1. Decide what you want to say before the event. Review it in your mind to
make sure it sounds okay. Keep rehearsing it until you can say it with
conviction and confidence.

2. Consider your potential listeners. Who will you be talking to and which
topics of conversation will be welcome? You need to make sure your message
matches your audience.

3. Be yourself. The worst mistake is to pretend you are something you are
not. People will see through you and distrust everything you say. Even if
you communicate clearly and with confidence.

4. Never expect things to work out perfectly. Be ready to deal with problems
by deciding in advance what you will do. What will you do if people ignore
your input? Now is the time to decide and not later on in the heat of the
moment.

5. Be flexible in your approach. Different people need to be treated
differently. Pay very close attention to how people respond to what you say
and keep adjusting your approach until you have a good rapport with your
listener.

6. Make the other person the focus of your attention and let him lead the
conversation in the early stages. Let that person steer the conversation
onto topics that are of interest to him.

7. Anticipate what could go wrong. Then do what you can to make sure those
scenarios do not occur. Adequate planning is the key to performing at your
best in the moment.

NitiniL

Start with these 7 steps and you are on your way.


Taking control of your life is getting in touch with your values, setting
meaningful goals and identifying your vision. To be in control of where life
is taking you means being more productive, dealing more effectively with
stress, having the ability to solve problems, handing change and developing
healthy optimism. Start with these 7 steps and you are on your way.

1. Get in touch with your values:

When we feel like we are working hard but not getting anywhere it is
probably because our priorities are not aligned with our values. To begin
identifying your values ask yourself these questions:

Ø What is important to me? Wisdom, freedom, happiness, equality, security,
self-respect, romantic love, money, power, comfortable living, fresh air,
beauty, controlling others, etc. Rate these values.

Ø Who is important to me?

Ø What or who is most important? Be honest with yourself.

Ø What do I need to do to feel good about myself?

Ø How would you feel if someone you respect knew this was one of your
values?

Ø Would you stick by this value?

Ø Is it who you are?

Ø How is this value affecting your life?

Make a list of your 10 top values. Of that 10 choose 4 and of the 4 choose
your top two. From this exercise you will see where you need to focus your
time and effort.

2. Decide what motivates you:

If tomorrow you knew you could do anything and not fail what would you do?
Is there something you are passionate about but are afraid of trying? If you
have no idea what your passion is spend some time reflecting on it. To
start, write down the types of activities you like to do and the types of
activities (hobbies) that make you feel good when you do them. What are your
special skills and talents ? Don't be shy ? Usually if it's something we
like to do we are probably good at it. What inspires you?


3. Set Goals:

In order to get what you really want you must start by setting goals. Goals
fuel your intent and make your desires concrete. Start by writing the goals
for this year in area of personal relationships, work, health, finances and
spirituality. List five goals in each category (add more categories if you
like). Then break them down into monthly and then weekly goals. Focusing on
what you intend in your life will bring it to reality. You create your life
? So start now by setting your goals.


4. Take Action:

Goals are worthless without action. If you have written long-term and
short-term goals and prioritized them, you have a plan of action. Just take
it one step at a time and do something everyday that takes you closer to
where you want to be. Remember however, to live in the present and be
thankful for what you have now, enjoying the journey toward your goals. Read
more information at

5. Manage Your Time:

We all have the same amount of time to use in a day. Why do some people a
lot done while others do very little? You have complete control of how much
time you spend productively and how much you waste. Plan your days and
prioritize your time to get the most out of the time you have. Use
time-wasters like standing in line or waiting in a doctor's office to catch
up on reading or something else that is important to you.


6. Do What Needs to be Done:

Do what has to be done to get to where you want to go. Whether it is a
mundane task or internal work, putting it off gets us nowhere. You are
either going forward or falling behind; there is no such thing as standing
still. Sometimes when we work on ourselves we stop when we get to a place
that we need to change. Change can be difficult when we have to step out of
our comfort zone. The more change is needed the more difficult it is.


7. Self-discipline:

Self-discipline is the final step that takes all that we have learned and
puts it into action. This is a trait that for most of us has to be
developed. To reach our goals we must visualize them as already being
accomplished and have faith that we can reach them. When you believe in and
trust yourself and have enough desire, self-discipline comes
easily.Readmore information at

NitiniL

Saturday, July 21, 2007

My Dream.....!!

Something Fou you ..........!!

kab tak raho gay aakhir yun door door ham say
milna paray ga aakhir ik din zaroor ham say
daaman bachanay walay yeh berukhi hai kesi
keh do agar hua hai koi kusoor ham say
hum chheen lain gay tum se yeh shaan-e-be niyaazi
tum maangtay phiro gay apna ghuroor ham say"
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Un sy door jany ka irada na thaa
sada sath rehny ka bhi wada na thaa
wo yaad na kareen ghy ye janty thy hum
magar itni jaldi bhool jahen ghy andaza na thaa
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Anjaan ek sathi ka is dil ko intejar hai,
Pysasi hain ye aankhen aur dil bekarar hai ,
Unke saath mil jaye to har raah aasaan ho jayegi,
Shayad issi anokhey ehsaas ka naam Pyaar hai
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Qalam Thi Hath Me Likhna Sikhaya Aapne,
Taqat thi Hath Me Hosla Dilaya Apne,
Manzil Thi Samne Rasta Dikhaya Aapne,
Ham to Sirf Dost Thy,
AASHIQ BANAYA AAPNE.
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JAb bhi chAnd ko dekho yAAd kernA humAin..
Yeh soch kAr nAhi k khobsurAt hAi woh..
bulke Ye soch kAr k
kitnaaaaaaa. .
tAnhA hAi woh..
SitAroon ki bheer mAin...

NitiniL

Tuesday, July 17, 2007

Rose..............



NitiniL

Friday, June 22, 2007

My Happy Moment



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NitiniL