NitiNil Life

Friday, January 25, 2013

आशीर्वाद का अर्थ

एक बार राजा विक्रमादित्य आचार्य सिद्धसेन सूरि के दर्शनार्थ गए। दोनों में कई विषयों पर चर्चा हुई। राजा के मन में जो भी जिज्ञासाएं थीं, उन्होंने आचार्य के समक्ष रखीं। दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे। राजा को भी शुरू में संकोच था कि पता नहीं आचार्य कैसे होंगे। पर वह उनकी सरलता से बेहद प्रभावित हुए। उनकी बातों से राजा का मन हल्का हो गया था। चलते समय जब विक्रमादित्य ने प्रणाम किया तो आचार्य ने धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया। इस आशीर्वाद में भी राजा को नएपन का अहसास हुआ। वह पहले भी कई संत-महात्माओं से मिल आए थे पर किसी ने उन्हें यह आशीर्वाद नहीं दिया था। राजा ने पूछ ही लिया-गुरुदेव क्षमा करें, एक जिज्ञासा है। आपने यह कैसा आशीर्वाद मुझे दिया है। अन्य साधु-संत तो आयुष्मान भव, पुत्रवान भव या धनवान भव का आशीर्वाद देते हैं पर आपने तो धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया है...। यह सुनकर आचार्य मुस्कराए और बोले- राजन्, दीर्घ जीवन का आशीर्वाद क्या दिया जाए। दीर्घ जीवन जीने वाले तो बहुत से जीव होते हैं जैसे हाथी, कछुआ। पुत्रवान भव का भी क्या मतलब है। कुत्ते, सुअर आदि सभी संतान पैदा करते हैं। और धनवान बनने के लिए भी क्या कहूं। पापियों और अन्यायियों के पास भी अपार संपत्ति होती है। किंतु धर्म लाभ तो भाग्यशाली लोग ही कर पाते हैं। और जो धर्मलाभ करते हैं वे दूसरों के जीवन को भी बदलने में सक्षम होते हैं। इसलिए मैंने आपको धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया है। राजा उनके प्रति नतमस्तक हो गए।

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